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दो वर्ष और ‘चुनावी परीक्षाÓ

पोस्टमार्टम
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बंगाल की ममता सरकार 20 मई को दो वर्ष पूरा करने जा रही है। इसके ठीक 13 दिन बाद दो जून को हावड़ा में लोकसभा का उपचुनाव होना है। वहीं 15 जुलाई से पहले ग्र्रामबांग्ला में पंचायत चुनाव होंगे। यह दोनों चुनाव सुश्री बनर्जी के लिए बड़ी ‘परीक्षाÓ हैं। क्योंकि, सारधा कांड के झंझावात के साथ-साथ व्यवस्था विरोधी कारक से भी तृणमूल को दो-चार होना होगा। सत्ता संभाले हुए ममता के दो वर्ष हो चुके हैं। अब लोग परखेंगे कि 34 वर्षों के वामपंथी शासन का अंत कर जिस उम्मीद के साथ राइटर्स की कुर्सी सौंपी थी, वह कितनी पूरी हुई है। दूसरा इसलिए भी यह चुनाव तृणमूल के लिए अहम है, क्योंकि आगामी वर्ष लोकसभा चुनाव होना है। राजनीतिज्ञ इन दोनों चुनावों को लिटमस टेस्ट के रूप में भी देख रहे हैं। दो वर्षों के अपने कार्यकाल में मुख्यमंत्री के रूप में सुश्री बनर्जी कितना सफल और कितना असफल रही हैं? इस सवाल का जवाब हर कोई चुनाव नतीजे से तलाशने की कोशिश करेगा। किसी भी राजनीति में चुनाव के दौरान एंटी इनकांबेंसी फैक्टर कार्य करता है। अब तक ममता बनर्जी को इस फैक्टर से पाला नहीं पड़ा था। क्योंकि, वह सत्ता में नहीं थीं। अब जबकि वह सत्ता में हैं तो उन्हें इससे मुखातिब होना होगा। विरोधी दल माकपा या फिर कांग्र्रेस इसका पूरा-पूरा फायदा उठाने की कोशिश करेगी। सारधा कांड ने इस चुनावी मुकाबले को और बिगाड़ दिया है। मुख्यमंत्री अपनी सरकार और पार्टी को इस कांड से अलग करने की पूरी कोशिश कर रही हैं। परंतु, यह एक ऐसी घटना है जो तत्काल लोगों के दिलो-दिमाग से मिटने वाली नहीं है। सुश्री बनर्जी के लिए इस चुनावी माहौल में सारधा प्रकरण खाज में कोढ़ करने वाली स्थिति पैदा कर दी है। सारधा कांड की सीबीआइ जांच वाली याचिका पर सुनवाई हाईकोर्ट ने फिलहाल टाल दी है। यदि सीबीआइ जांच का आदेश हो जाता तो परेशानी और बढ़ सकती थी। विरोधी दल राज्य सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि सारधा कांड को लेकर पंचायत चुनाव कराने से डर रही है। क्योंकि, इस घोटाले में ठगे गए सर्वाधिक लोग ग्र्रामीण इलाकों के हैं, जिनकी खून-पसीने की कमाई लूट चुकी है। ऐसे में पंचायत चुनाव में जीत दर्ज करना लोहे के चने चबाने जैसा हो सकता है। वहीं दूसरी ओर कमर कस कर माकपा, कांग्र्रेस मैदान में कूद चुकी है और सरकार व सारधा के रिश्तों को लेकर लोगों के मन में जन्मे आशंका व संदेह के बादल को और घनघोर करने की कोशिश कर रही है। वर्ष 2011 के विधानसभा चुनाव के बाद वैसे तो तीन-चार चुनाव हुए। विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव, स्थानीय निकायों के चुनाव और लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव। इनमें ममता को जीत मिली थी, पर अब क्या होगा? यह भविष्य बताएगा।

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